सिक्कों की अगर हम महत्व देखे तो सर्वप्रथम इनके मध्यम से शासकों का वंशक्रम निर्धारित किया जाता है उनके शासन काल की आर्थिक सम्पनता का अनुमान लगाया जा सकता है चीकू पर उत्कीर्ण विशेष धार्मिक चिन्हों के आधार पर शासकों की धार्मिक प्रवृत्ति का पता चलता है सिक्कों की बनावट तथा उत्कीर्ण मूर्तियों से तत्कालीन कला तथा वेशभूषा सामाजिक परिवेश का बोध होता है
सिक्कों के अध्ययन को न्यूमेटिक्स (मुद्रा शास्त्र) कहा जाता है
भारत के सबसे प्राचीन सिक्के पंचमार्क /आहत सिक्के है जो लेख रहित है सर्वप्रथम 1835 ई में जेम्स प्रिसेप इसका नाम आहत लिए सिक्के दिए
भारत में सर्वप्रथम लेखायुक्त सोने के सिक्के इंडो ग्रीक शासकों ने जारी किए भारत में डीडी कोसांबी और रेपसन ऐसे इतिहासकार हुए हैं जिन्होंने सिक्को के आधार पर भारत का इतिहास लिखने का प्रयास किया है वैदिक साहित्य में कनिष्क का सत्मान नामक सिक्को का उल्लेख मिलता है किंतु यह सिक्के अब तक उपलब्ध नहीं हुए हैं
सिक्के पर कई प्रकार के चिन्ह होते हैं जिनमें सिक्के चलाने वाले समुदाय व्यक्ति की कई अज्ञात बात सामने आती है सिक्को पर अंकित चिन्हों मूर्तियों तथा नाम उल्लेख से उस समय के प्रचलित धर्म का ज्ञान होता है
प्राचीन काल से लेकर वर्तमान तक कई लाखों की संख्या में सोने चांदी तांबे और शीशे के सिक्के मिल चुके हैं अभिलेखों की भाती सिक्के के भी राजस्थान के इतिहास को जानने में सहायक सिद्ध होते है
आहट के उत्खनन से प्राप्त सिक्कें
उदयपुर जिले के आहाड़ कस्बे में खुदाई करने पर यहां 6 तांबे के सिक्के indo-greek मुद्राये प्राप्त हुई जिनका समय ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी से प्रथम व द्वितीय आका गया है यहां प्राप्त सिक्को में एक सिक्का चौकोर और अन्य गोल है इन सिक्कों में से एक सिक्के पर त्रिशूल का अंकन दिखाई देता है indo-greek मुद्रा पर एक तरफ दोनों हाथों में तीर लिए हुए अपोलो तथा दूसरी तरफ महाराजन तत्रर्ष तक अंकित है
रैट के उत्खनन से प्राप्त सीकके
प्राचीन काल में रेट जयपुर राज्य के भरतला टिकाने का एक छोटा सा गांव था जो वर्तमान में टोंक जिले में है जहां उत्खनन करने पर 3075 के चित्र चांदी के पंचमार्क सिक्के प्राप्त हुए यह सिक्के मौर्य काल के हैं इनका वजन 57 ग्रेन है भारत में एक साथ इतने सीखे और कहीं नहीं मिले इससे प्राचीन भारत का टाटानगर कहते हैं भारत के अलावा यहां के सिक्कों को धरण या पण कहा जाता है
यहां चांदी के सिक्के के अलावा तांबे के सिक्के भी मिले हैं जो मालव, मित्र ,सेनापति इंडोसीसेनियन आदि वर्ग के हैं इन सिक्कों का गणमुर्दाऐ कहा गया है
पंचमार्क /आहत सिक्के
भारतीय इतिहास में सर्वप्रथम इसा पूर्व चौथी शताब्दी में आहत सीकके खंडित अवस्था में मिलेंं थे इन पर किसी राजा का नाम अंकित ना होकर 5 प्रकृति पेड़ मछली सांडं हाथी अर्धचंद्र चिन्ह बने हुए थे इन्हें ही पंचमार्क सिक्के कहते हैं इन सिक्कों का निर्माण ठप्पा मारकर किया जाता था अतः यह आहत सिक्के कहलाए यह आहत पंचमार्क सिक्के भारत के सबसे प्राचीन सिक्के माने जाते हैं जिन्हें चांदी से बनाया जाता था
मालव गण के सिक्के
यह सिक्के रेड व पूर्वी राजस्थान में हजारों की संख्या में पाए गए हैं इन पर मालवाना जय अथवा अग्र भाग पर बोधि वृक्ष और कुछ तो बाग में सिंह नंदी राजा का मस्तक भी अंकित रहता है इन सिक्कों का समय ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी से ऐसा की दूसरी शताब्दी तक का है
सेनापति मुद्राए
6 मुद्राएं रेड से प्राप्त हुए जिनमें से 5 चौकोंर और एक गोल थी इन मुद्राओं पर ब्राह्मी लिपि में वंशघोष अंकित है यह मुद्रा ईसा पूर्व की तीसरी व दूसरी शताब्दी की है
रंगमहल के उत्खनन के सिक्के
रंगमहल से 105 तांबे के कुषाणोत्तर काल के सिक्के मिले हैं जिन्हें मुंरडा म नाम दिया गया
रियासतों में प्रचलित सिक्के
राजपूताने की रियासतों के सिक्खों के विषय में कैब ने 1893 ई मे द करेंसी ऑफ दी हिंदू स्टेटस ऑफ राजपूताना नामक पुस्तक लिखी
शाहपुरा रियासत के सिक्के
यहां पर चलने वाले स्थानीय सिक्कों को ग्यारसंदिया कहते थे यह चांदी का सिक्का 1760 ई में मेवाड़ सरकार ने जारी किया था जो चित्तौड़ की टकसाल से में बनता था इसके अलावा या चित्तौडी सिक्का भीलवाड़ा टकसाल में बनता था सिक्के चलते थे यहां पर तांबे के सिक्के को माधोसाई सिक्का कहते थे
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